भारत जैसे आध्यात्मिक देश में “वसुधैव कुटुम्बकम्” जो सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है, इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्) की भावना से समय-समय धर्म, सँस्कृति की रक्षा के लिए व परोपकार, परमार्थ व जग कल्याण हेतु अनेकों साधु, संत-महात्माओं, ऋषि मुनियों, योगियों, तपस्वियों, महापुरुषों का इस पावन दिव्य धरती पर जन्म(अवतरण) होता आया हैं, इसी प्रकार इस परम्परा में संत-महात्माओं व शूरवीरों की पावन पवित्र भक्तिमय धरा, मरूभूमि, मरूस्थल मारवाड़ माटी राजस्थान के (मारवाड़) क्षेत्र में परम पुज्य श्रद्धेय बाल संत श्री सत्यप्रकाशजी महाराज का जन्म (2/2/1996) सनातन पञ्चाङ्ग के अनुसार विक्रम संवत 2052,बसन्तोत्सव, चैत्र मास, कृष्ण पक्ष, दूज को ब्रह्म मुहूर्त की शुभ वेला पर किसान परिवार में आपका जन्म हुआ। बचपन से ही माता-पिता व परमात्मा से आप में अच्छे संस्कार थे, बाल्य अवस्था से ही आप, नशा, कुसंग व विकारों से दूर थे । केवल भगवान श्री कृष्ण में और उनकी चर्चा, कथा, सत्संग, भजन-कीर्तन में ही आपकी गहन रूचि थी । प्रारम्भिक शिक्षा नजदीक गाँव में ही हुई ।