एक आध्यात्मिक प्रकिया है हमारे ऋषि मुनि अनादिकाल से योग करते थे । जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है।
(१) पातञ्जल योग दर्शन के अनुसार – योगश्चित्तवृतिनिरोधः
अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
◆ योग के 8 अंग (अष्टांग योग)
★ यम (पाँच परिहार):(अहिंसा, सत्य, अस्तेय,ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह)
अहिंसा, झूठ न बोलना, लालच न करना, अपशब्द न बोलना, विषयों में आसक्त न होना ये पाँच यम हैं ।
★ नियम(पाँच धार्मिक क्रिया):(शौच, संतोष, तपस्या, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान)
स्वच्छता(पवित्रता), सन्तुष्टि, तपस्या, अध्ययन, भगवान को आत्मसमर्पण ये पाँच नियम हैं ।
★आसन(मूलार्थक): (स्थिरं सुखं आसान) अर्थात स्थिर और सुखपूर्वक बैठने की क्रिया ही आसन हैं ।
★ प्राणायाम(सांस स्थगित करना): अपनी सांसों को नियमित करने की क्रिया ही प्राणायाम हैं ।
★ प्रत्याहार(अमूर्त्त): बाहर की चीजों से मन को हटाना ।
★ धारणा(एकाग्रता): एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना ।
★ ध्यान(ध्यान): ध्यान जिस पर केंद्रित हैं उसका चिंतन ।
★ समाधि(विमुक्ति): ध्यान को चैतन्य में विलय करना ।